शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

सार्थक की सावित्री दीदी नहीं रहीं

मेरी एक संस्मरणनुमा कहानी रूपान्तरण
की मुख्य पात्रा आदरणीया सावित्री दीदी अपने बूढे माता पिता के गांव में ही रहा करती थीं। उन्हें अचानक सिर में दर्द की शिकायत हुयी। उन्हें लेकर दिल्ली आया गया। जहां इलाज हुआ और कुछ फायदा भी वापिस गांव जा रही थीं कि अल्मोडा पहुंचते पहुंचते पुनः सिर दर्द हुआ और बस वो ईश्वर से मिलने चली गयीं।
हमारे पडोस में रहती थी सावित्री दीदी जो पास ही के किसी प्राइमरी विद्यालय में अघ्यापिका थीं। घर में एकमात्र कमाउ सदस्य थीं तथा सबसे बडी लडकी जिस पर अपने बूढे मॉ बाप ओैर चार छोटे भाई बहिनो की जिम्मेदारी थी। मेहनती इतनी कि कोई भी लजा जाय। अपनी प्राइमरी विद्यालय की अघ्यापकी की बदौलत आजकल एक भाई सुनील को लेखपाल की ट्रेनिंग करवा रही थी और एक छोटी बहिन का विवाह करवा चुकी थी। एक छोटे भाई और बहिन को साथ में रख कर पढा रही थीं। स्वयं संत का जीवन जीते हुये अपने बूढे मॉ बाप ओैर छोटे भाई बहिनो के लिये सांसारिक सुखों को जुटाने में जी जान से लगी रहती थीं। स्वयं के विवाह अथवा प्रेम जैसे विषय के संबंध में सोचना भी जैसे पाप समझती थीं।
उस सच्ची कर्मयोगिनी को श्रद्धांजलि ...


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